तीज-त्यौहार विशेष - अनोखा ससुराल


तीज का त्यौहार आने वाला था। वृंदा जी की दो बड़ी बहुओं के मायके से, तीज का सामान भर भर बहुओं के भाइयों द्वारा पहुंचा दिया गया था।
छोटी बहू उर्मिला का यह शादी के बाद पहला तीज-त्यौहार था। चूँकि उर्मिला के माता पिता का बचपन में ही देहांत हो जाने के कारण, उसके चाचा चाची ने ही उसे पाला था। उर्मिला को हमेशा हॉस्टल में रहने के कारण उसे यह सब रीति-रिवाजों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी।

पढ़ने में होशियार उर्मिला को कॉलेज के तुरंत बाद जॉब मिल गई। विकास और उर्मिला एक ही कंपनी में काम करते थे। जहां दोनों ने एक दूसरे को पसंद किया और घरवालों ने भी बिना किसी आपत्ति के दोनों की शादी करवा दी। आज जब मीरा ने देखा कि उसकी जेठानियों के मायके से शगुन में ढ़ेर सारा सुहाग का सामान, साड़ियां, मेहंदी, मिठाईयां इत्यादि आया है तो उसे अपना कद बहुत छोटा लगने लगा।

मायके के नाम पर उसके चाचा चाची का घर तो था, परंतु उन्होंने मीरा के पिता के पैसों से बचपन में ही हॉस्टल में एडमिशन करवा कर अपनी जिम्मेदारी निभा ली थी और अब शादी करवा कर उसकी इतिश्री कर ली थी।
आखिर उसका शगुन का सामान कौन लाएगा, यह सोच सोचकर उर्मिला की परेशानी बढ़ती जा रही थी। जेठानियों को हंसी ठहाका करते देख उसे लगता शायद दोनों मिलकर उसका ही मजाक उड़ा रही हैं। आज उसे पहली बार मां बाप की सबसे ज्यादा कमी खल रही थी।
अगले दिन उर्मिला की सास वृंदा जी ने उसे आवाज लगाते हुए कहा, उर्मिला बहू, जल्दी से नीचे आ जाओ, देखो तुम्हारे मायके से तीज का शगुन आया है।
यह सुनकर मीरा भागी भागी नीचे उतरकर आँगन में आई और बोली, चाचा चाची आए हैं क्या मम्मी जी? कहां हैं? मुझे बताया भी नहीं कि वे लोग आने वाले हैं। मीरा एक सांस में बोलती चली गई। उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि उसके चाचा चाची भी कभी आ सकते हैं।

तभी वृंदा जी बोलीं, अरे नहीं, तुम्हारे चाचा चाची नहीं आए बल्कि भाई और भाभियां सब कुछ लेकर आए हैं।
मीरा चौंककर बोली, पर मम्मी जी मेरे तो कोई भाई नहीं हैं फिर...?
ड्रॉइंग रूम में जाकर देखो, वो लोग तुम्हारा ही इंतजार कर रहे हैं। वृंदा जी ने फिर आँखे चमकाते हुए कहा। उर्मिला कशमकश में उलझी धीरे धीरे कदम बढ़ाती हुई, ड्रॉइंग रूम में घुसी तो देखा उसके दोनों जेठ जेठानी वहां पर सारे सामान के साथ बैठे हुए थे। पीछे-पीछे वृंदा जी भी आ गईं और बोलीं, भई तुम्हारे मायके वाले आए हैं, खातिरदारी नहीं करोगी क्या?
उर्मिला को कुछ समझ नहीं आ रहा था। वो कभी सास को देखती तो कभी बाकी सभी लोगों को। उसके मासूम चेहरे को देख कर सबकी हंसी छूट पड़ी।

वृंदा जी बोलीं, कल जब तुम्हारी जेठानियों के मायके से शगुन आया था तो हम सबने ही तुम्हारी आंखों में वह नमी देख ली थी। जिसमें माता पिता के ना होने का गहरा दुःख समाया था। मायके की महत्ता भला हम औरतों से ज्यादा कौन समझ सकता है। इसलिए हम सबने तभी तय कर लिया था कि आज हम सब एक नया रिश्ता कायम करेंगे और तुम्हें तुम्हारे मायके का सुख जरूर देंगे।
उर्मिला को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था। जिन रिश्तों से उसे कल तक मजाक बनने का डर सता रहा था। उन्हीं रिश्तों ने आज उसे एक नई सोच अपनाकर उसका मायका लौटा दिया था। उर्मिला की आंखों से खुशी और कृतज्ञता के आंसू बह रहे थे।

समाज में एक नई सोच को जन्म देने वाले उसके ससुराल वालों ने उर्मिला का कद बहुत ऊंचा कर दिया था। साथ ही साथ अपनी बहू के ससुराल को ही मायका बनाकर समाज में वृंदा का कद बहुत ऊंचा उठ चुका था। उर्मिला अपनी सास को सास नही सगी मां मानने लगी। और जेठानीयों को सगी बहन और जेठ को अपना भाई। शादी के बाद पहले तीज-त्यौहार से ही सब परिवार एकता की डोर से बंधा सदैव खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहा है।

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