श्रावण मास, बाबा बैद्यनाथ धाम कि महिमा, ज्योतिर्लिंग सहित ह्रदय शक्तिपीठ, सम्पूर्ण जानकारी
एशिया का सबसे बड़ा 120 किलोमीटर की मेला से आप सब तमाम शिव भक्त परिचित ही हैं। यहां बारह ज्योतिर्लिंगों में से नौवां बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग जो कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है, विश्व का यह एकमात्र ऐसा देव स्थान है जहां शक्तिपीठ के साथ ही 12 ज्योतिर्लिंग में से एक नौवां ज्योतिर्लिंग भी है। झारखण्ड राज्य के देवघर में ह्दय शक्तिपीठ के बिल्कुल समीप एक ही प्रांगण में स्थापित है। ह्रदय शक्तिपीठ को जय दुर्गा शिव को बाबा बैद्यनाथ कहा जाता है। बैद्यनाथ ही इस शक्तिपीठ के भैरव हैं। सती अपने पिता पृथ्वी सम्राट दक्ष प्रजापति के घर बिना बुलावा यज्ञ में गई और पिता द्वारा अपने पति शिव के अपमान को सहन नहीं कर सकीं तो अपने शरीर का त्याग कर दीं। शिव, सती का शव लेकर भ्रमण करने लगे पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगा, तब सभी देवताओं ने आदिशक्ति जगत जननी का आवाह्न किया। जगत-जननी से विष्णु को मार्गदर्शन मिला और विष्णु जी ने सती के शरीर पर अपना चक्र सुदर्शन छोड़ मृत शरीर को काट दिया। जहां-जहां सती के शरीर के अंग, आभुषण, वस्त्र गिरा शक्तिपीठ अस्तित्व में आया।
देवघर में जगत-जननी रूपा सती का ह्दय भाग गिरा, इसलिए देवघर में स्थापित शक्तिपीठ को ह्दय शक्तिपीठ कहा जाता है। माता का ह्दय अपने पुत्र-पुत्री के लिए सदैव प्रेम से भरा रहता है। जो भी भक्त गण अपनी ह्दय की बात इस स्थान पर रखता है उसका निराकरण होना तय माना जाता है। बाबा बैद्यनाथ के साथ ही यहां माता की ह्वदय शक्तिपीठ का दर्शन होता है और बाबा बैद्यनाथ के साथ ही हृदय शक्तिपीठ माता का आशिर्वाद भक्त जन पर बनी रहती है। ज्योतिर्लिंग के साथ हृदय शक्तिपीठ होने के कारण इस स्थान को देवघर कहा जाता है। यहां सभी देवताओं का वास सदैव रहता है। लेकिन इस कलियुग में शक्तिपीठ में स्थापित जगत-जननी कि कृपा भक्तों पर शिघ्र दिखाई देती है। यहां भोलेनाथ संग जगत-जननी का पूजन शिव भक्त करते हैं और अपनी मनोरथ पूरी कर सुखमय जीवन व्यतीत करते हैं। भोलेनाथ पर उत्तर वाहनी गंगा का जल चढ़ाने मात्र से आद्य देव शिव और आद्या शिव की अर्धांगिनी सहज ही प्रसन्न हो जाती हैं।
प्राचीन कथा के अनुसार दैत्य राज रावण शिव जी का बहुत बड़ा भक्त था। एक बार अपनी कठोर तप शक्ति भक्ति के प्रभाव से यज्ञ कुंड में अपने शिष का हवन करने लगा अपना नौ सिर काट हवन कुंड में अर्पित कर दिया दसवां सिर काटने जा रहा था कि शिव जी रावण की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिए और रावण को वरदान मांगने के लिए कहा। तब रावण शिवजी को लंका में वास करने का वरदान मांगा, उस समय रावण से प्रसन्न देवाधिदेव महादेव रावण को आत्म लिंग प्रदान कर कहा कि यहां से लेकर मुझे जाते हुए जहां भी धरती पर रख दोगे मै वहीं स्थापित हो जाऊंगा। शिवजी द्वारा रावण जैसे असुर को आत्म लिंग दिये जाने से जगत-जननी माता पार्वती खुश नही थीं, मां पार्वती को चिंता हुई रावण इस आत्म शिव लिंग को लंका ले जाकर अजेय हो जायेगा और राक्षसों का आतंक पृथ्वी पर धर्म को प्रभावित करेगा। माता पार्वती की योजना अनुसार गंगा रावण के कमंडल में प्रवेश कर गई। जब रावण शिव जी द्वारा प्रदान आत्म लिंग ले जाने के पहले अपने कमंडल की जल से आचमनी कर शुद्ध हुआ तभी गंगा रावण के उदर में समाहित हो गई।
रावण अपने पुष्पक विमान से आत्म लिंग लेकर चल दिया, योजनानुसार विष्णु बैजू का भेष लिए और ब्रह्मा गौ बन निर्जन स्थान का चयन किया जहां सती का ह्दय भाग स्थापित था। उदर में समाहित गंगा के प्रभाव से इस ह्दय शक्तिपीठ के समीप आते-आते रावण को तीव्र लघुशंका लगी और रावण चरवाहे को देखकर उतर गया। शिव लिंग बैजू के भेष में विष्णु चरवाहे को सौंप जल्द निवृत हो आने की कह लघुशंका करने बैठ गया। गंगा का वेग इतना तेज था कि रावण को निवृत होने में देर लगने लगी इसी बीच गौ की भेष में ब्रह्माजी दूर जाने लगे तब चरवाहे की भेष में विष्णु जी ने अपनी गईयों को भागने की बात कह आत्म लिंग को यहीं रख अपने अराध्य देव शिव को प्रणाम कर चले गए।
गंगा अपनी प्रचंड वेग से पाताल लोक को चली गई जो आज भी पाताल गंगा तालाब के नाम से जानी जाती है। लघुशंका से लौटकर जब रावण वापस हुआ तो शिव लिंग घरती पर रखा पाया, शिवलिंग को उठाने का प्रयास किया उठा नही पाया तो अपने साथ हुए छल का आभास किया। अत्यंत क्रोधित हो शिव लिंग को अपने अंगुठे से जमीन में दबा दिया जो अंगुठे से दबा शिव लिंग पर निशान अब भी मौजूद है। रावण वहां से लंका चला गया और सभी देवता एकत्रित हो यहां शिव की पूजा-अर्चना की।
यहां नियमित गौ चराने बैजू अपनी गायों को लेकर आया करते थे, कुछ समय बाद एक गाय यहां भूमि में धंसा शिवलिंग के ऊपर खड़ी होती और उसके दूध गीर जाता था। घर आने के बाद गाय साम को दूध नही देती देखते-देखते चरवाहा बैजू उस गाय पर नज़र डालने लगे तो देखा गाय वहां जाकर खड़ी है और दूध गीर रहा है, बैजू दूध गिराती गाय के पास आकर उस भूमि पर अपनी लाठी से प्रहार किया कि कोई भूत गाय के दूध को खिंच लेता है।
उसी रात्री बैजू को सब दृश्य सपने में दिखा भगवान शिव ने कहा बैजू उत्तरायण गंगा जल से मेरा अभिषेक करो मै यहां तुम्हारे नाम से जाना जाऊंगा और तुम्हारे कुल में जन्म लेने वाले ही हमारे प्रथम पूजा के हकदार रहेगें जो आज बैजू यादव परिवार के लोग मंदिर के अंदर का चढ़ावा उठाने के हकदार हैं और शिव पार्वती मंदिर के शिखर पर चढ़कर दोनों मंदिर का गठजोड़ बैजू परिवार ही करता है। श्रद्धालु यहां ज्यादातर मन्नत पूरी होने पर हृदय शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग शिखर का गठजोड़ कराते हैं जो बैजू परिवार के लोग ही करते हैं। यहां हृदय शक्तिपीठ के रखवाली भैरों रुप में बैद्यनाथ करते हैं। शिव भक्त सुलतानगंज उत्तरायण गंगा का जल अभिमंत्रित करवा कावर यात्रा, डाक बम, सुत्ता बम के रूप में 120 किलोमीटर की दूरी तय कर बाबा बैद्यनाथ को अर्पित कर वासुकि नाथ की यात्रा पूरी कर सम्पूर्ण यात्रा का फल प्राप्त करते हैं।
रावण अपने दैत्य गुरु शुक्राचार्य से पंचवक़्त्रम निर्माण की विद्या सीखा था। रावण अपने लंका में चारों तरफ़ पंचशूल लगाया था। यहां शिव के ज्योतिर्लिंग मंदिर पर पंचशूल है, जबकि शिव मंदिर पर त्रिशूल होता है। शिव पंचेश्वर हैं, यह पंचशूल शिव मंत्र पंचाक्षर का प्रतीक है। पंचशूल पांच तत्वों का प्रतीक माना जाता है- क्षितिज, जल, पवन, गगन, समीर। सभी पांच तत्वों से मिलकर यह पंचशूल बना है। देवघर तंत्र क्षेत्र रहने के कारण मंदिर के ऊपर पंचशूल लगा हुआ है। शिव को पंचानंद भी कहा जाता है, इसलिए इस पंचशूल को इन्हीं का प्रतीक माना गया है। यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। दर्शन से सभी पाप नष्ट हो मोंक्ष का मार्ग सुलभ हो जाता है रोग मुक्त अच्छे स्वास्थ्य की कामना ज्यादातर भक्त रखते हैं।
बाबा बैद्यनाथ दर्शन के बाद किजिये बासुकीनाथ दर्शन
यहां ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने के बाद भक्त अपनी मनोरथ पूर्ति के लिए अपनी यात्रा एक पिछले जल के साथ बासुकीनाथ मंदिर देवघर झारखण्ड की करते हैं। बासुकी के पिता महर्षि कष्यप माता कद्रू है कद्रू भी दक्ष प्रजापति की पुत्री है। दक्ष प्रजापति की तेरह पुत्रियों का विवाह दक्ष प्रजापति के बड़े भ्राता के कामना से उत्पन्न पुत्र कश्यप ऋषि से हुआ था। बासुकी शिव की तपस्या कर सदैव साथ रहने का वरदान मांगा था जो समुद मंथन के बाद वरदान फलित हुआ। बासुकीनाथ मंदिर बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग से 42 किलोमीटर दूर है। यह मंदिर झारखण्ड राज्य के दुमका जिले के जरमुंडी गांव में स्थित है। बासुकीनाथ मंदिर में शिव और पार्वती का मंदिर आमने-सामने है। बासुकीनाथ का दर्शन करने वालों को सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। सर्प के काटने से अकाल मृत्यु नही होती है। वैसे तो बताया जाता है बासुकीनाथ दर्शन के बाद सर्प नही काटते हैं।
नौलखा मंदिर देवघर
झारखण्ड के देवघर में लोकप्रिय नौलखा मंदिर बाबा बैद्यनाथ धाम से दो किलोमीटर दूर है। यह राधाकृष्ण का पावन मंदिर है यहां देवताओं की लगभग 146 फिट ऊची मुर्तियां हैं। इस मंदिर निर्माण में नौ लाख रुपए लगा था इसलिए इस मंदिर को नौलखा मंदिर कहा जाता है। इस मंदिर का निर्माण कोलकाता की रानी चारुशिला द्वारा नौ लाख में कराया गया था।
नंदन पहाड़ देवघर
बैद्यनाथ धाम से तीन किलोमीटर दूरी पर नंदन पहाड़ स्थित है। यहां शिव, पार्वती सहित कार्तिकेय, नंदी व गणेशजी की मंदिर है। एक कथा के अनुसार रावण ने जबरन शिवधाम में प्रवेश की कोशिश की तब नंदी ने बल पूर्वक रोका तो रावण गुस्सा में आकर नंदी को पहाड़ी पर फेक दिया इसलिए इस पहाड़ी का नाम नंदन पहाड़ पड़ा। यहां से सुर्यास्त और सुर्य उदय का अद्भुत नजारा दिखाई देता है। इस पहाड़ी पर मनोरंजन पार्क, नौका बिहार, खेल का मैदान, स्वीमिंग पुल है पिकनिक के लिए बहुत ही रोचक जगह है।
तपोवन पर्वत देवघर
तपोवन पर्वत बैद्यनाथ धाम देवघर से 13 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यहां तपोवन में ही तपोनाथ महादेव मंदिर है। यहीं एक दरार वाली चट्टान है। इस चट्टान में हनुमानजी की आकृति दिखाई देती है। तपोवन पर्वत के नीचे एक जलकुंड है ऐसा माना जाता है कि सीता इसमे स्नान करती थीं, इसलिए इस कुंड को सीता कुंड भी कहते हैं।
त्रिकूट पहाड़ देवघर
त्रिकूट पहाड़ देवघर का प्रमुख स्थान है। बैद्यनाथ धाम से त्रिकूट पहाड़ की दूरी 10 किलोमीटर है। पर्वत के चढ़ाई पर घने जंगल में प्रसिद्ध त्रिकुटाचल महादेव मंदिर स्थित है। यहां ऋषि दयानंद का आश्रम भी है। इस पहाड़ को त्रिकुटाचल के नाम से भी जाना जाता है। यहां रोपवे से पर्वत की चोटी पर पहुंच सकते हैं। ट्रेकिंग करके भी जाया जाता है। यह पिकनिक के लिए बहुत ही अच्छी जगह है।
सत्संग आश्रम देवघर
सत्संग आश्रम देवघर आकर्षण का केंद्र है। बैद्यनाथ धाम से 6 किलोमीटर दूर स्थित है। आश्रम में संग्रहालय एवं चिड़िया घर है। मनमोहक यह आश्रम पर्यटकों को आकर्षित करता है। आश्रम में ठहरने के लिए कमरा भाड़े पर उपलब्ध है। कमरे की बुकिंग आनलाईन भी कर लिया जाता है। सत्संग की यह शाखा ठाकुर अनुकूल चंद्र द्वारा शुरू की गई है। आश्रम के पास रसोईघर है, यहां भोजन के पैसे नही लिए जाते हैं। इसे आनंदबाजार भी कहा जाता है।
रिखीया आश्रम देवघर
देवघर घूमने की जगह में रिखीया आश्रम भी है। यह स्थान बाबा बैद्यनाथ धाम से 12 किलोमीटर दूर सुसज्जित है। रिखीया पीठ को श्रीश्री पंच दसनाम परमहंस अलखबरह भी कहते हैं, यह भारत देश के सबसे पुराने योग आश्रमों में से एक सुप्रसिद्ध रिखीआयाआश्रम है। इस आश्रम की स्थापना स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने की थी। इस आश्रम में कईयों संत रह चुके हैं। यह स्वामी सत्यानंद का तपोभूमि है।
उत्तरायर्ण गंगा घाट सुलतानगंज से बाबा बैजनाथ की कांवर यात्रा - ध्यान रखने योग्य कुछ बातें
सुल्तानगंज रेलवे स्टेशन से उत्तरायर्ण गंगा घाट की दूरी मात्र एक किलोमीटर है जो भक्त रेल मार्ग से कांवर यात्रा के लिए यहां आते हैं वो इस सुल्तानगंज रेलवे स्टेशन उतर, पैदल मार्ग एक किलोमीटर गंगा घाट आकर स्नान करने के बाद दो पात्र जल अभिमंत्रित करवा दान दक्षिणा दे बाबा बैद्यनाथ धाम कि कांवर यात्रा प्रारंभ करते हैं। दो पात्र गंगा जल में आगे का जल बैद्यनाथ पीछे का बासुकीनाथ के लिए अभिमंत्रित होता है। कांवड़ यात्रियों को ध्यान में रखकर यात्रा करनी चाहिए कि जो जल बाबा बैद्यनाथ के लिए संकल्प कराया गया वो जल कांवड़ में आगे चलना चाहिए और बैद्यनाथ को अर्पित किया जाना चाहिए, इसके लिए अपने कांवड़ में कुछ आगे पहचान बना लिया जाता है जैसे सजावट में धूधर गुलदस्ता आदि। कांवड़ यात्रा के दौरान कभी भी कांवड़ को आगे से घूमाकर कंधा नही बदलना चाहिए इससे जल लंघन माना जाता है और आगे का जल पीछे हो जाता है। एक कंधे से दूसरे कंधे पर लेने के लिए सर के ऊपर से बदला जाता है। भारी कांवड़ होने की स्थिति में कांवड़ को पीछे से कंधा बदल कुछ दूर बाद पूनः पीछे से बदल आगे का जल आगे कर लिया जाता है ऐसा विशम परिस्थितियों में करना चाहिए। सदैव आगे का जल आगे बैद्यनाथ के लिए रहता है। रास्ते में ठहरने के समय कांवड़ में बंधे जल को जमीन से छूना नही चाहिए। सदैव बांस बल्ली से बना उचित स्थान पर ही कांवड़ रखना चाहिए। बाबा बैद्यनाथ धाम कांवड़ से ले आया गया आगे का जल अर्पित करने के बाद बासुकीनाथ यात्रा प्रारंभ किया जाता है, बासुकीनाथ कांवड़ का पिछला जल अर्पित करने के साथ ही बैद्यनाथ धाम कि यात्रा पूर्ण हो जाती है। कांवड़ यात्रा के दौरान रास्तें में शौच, लघुशंका, जल-जलपान, भोजन आदि के बाद स्नान कर, कांवड़ को प्रणाम कर शुद्ध मन से पूनः यात्रा की जाती है। वैसे तो अनायास ही भक्तों का पूरा मन बाबा में लिन रहता है जय-जयकार, गीत-संगीत से लबालब मन बाबा बैद्यनाथ से अलग होता ही नहीं है। बोल-बम के नारा बा बाबा एक सहारा बा, बोल-बम बोल-बम। बोल भईया- बोल-बम, बोल बहिनी - बोल-बम, बोल चाची - बोल-बम, बोल चाचा - बोल-बम, बोल माई- बोल-बम, सब मिल बोल बोल-बम बोल-बम। हाथी न घोड़ा न कवनो सवारी.... पैदल ही अईबो तोर दुवारी ऐ भोलेनाथ पैदल ही अईबो तोर दुवारी..... । जय जयकार, गीत-संगीत से लबालब 120 किलोमीटर का सफ़र जैसे लगता है 20 किलोमीटर भी नहीं है। मन में बाबा के प्रति श्रद्धा-भक्ति का बना रहना यात्रा में कोई असुविधा उत्पन्न नही होने देता।
सुल्तानगंज रेलवे स्टेशन से उत्तरायर्ण गंगा घाट की दूरी मात्र एक किलोमीटर है जो भक्त रेल मार्ग से कांवर यात्रा के लिए यहां आते हैं वो इस सुल्तानगंज रेलवे स्टेशन उतर, पैदल मार्ग एक किलोमीटर गंगा घाट आकर स्नान करने के बाद दो पात्र जल अभिमंत्रित करवा दान दक्षिणा दे बाबा बैद्यनाथ धाम कि कांवर यात्रा प्रारंभ करते हैं। दो पात्र गंगा जल में आगे का जल बैद्यनाथ पीछे का बासुकीनाथ के लिए अभिमंत्रित होता है। कांवड़ यात्रियों को ध्यान में रखकर यात्रा करनी चाहिए कि जो जल बाबा बैद्यनाथ के लिए संकल्प कराया गया वो जल कांवड़ में आगे चलना चाहिए और बैद्यनाथ को अर्पित किया जाना चाहिए, इसके लिए अपने कांवड़ में कुछ आगे पहचान बना लिया जाता है जैसे सजावट में धूधर गुलदस्ता आदि। कांवड़ यात्रा के दौरान कभी भी कांवड़ को आगे से घूमाकर कंधा नही बदलना चाहिए इससे जल लंघन माना जाता है और आगे का जल पीछे हो जाता है। एक कंधे से दूसरे कंधे पर लेने के लिए सर के ऊपर से बदला जाता है। भारी कांवड़ होने की स्थिति में कांवड़ को पीछे से कंधा बदल कुछ दूर बाद पूनः पीछे से बदल आगे का जल आगे कर लिया जाता है ऐसा विशम परिस्थितियों में करना चाहिए। सदैव आगे का जल आगे बैद्यनाथ के लिए रहता है। रास्ते में ठहरने के समय कांवड़ में बंधे जल को जमीन से छूना नही चाहिए। सदैव बांस बल्ली से बना उचित स्थान पर ही कांवड़ रखना चाहिए। बाबा बैद्यनाथ धाम कांवड़ से ले आया गया आगे का जल अर्पित करने के बाद बासुकीनाथ यात्रा प्रारंभ किया जाता है, बासुकीनाथ कांवड़ का पिछला जल अर्पित करने के साथ ही बैद्यनाथ धाम कि यात्रा पूर्ण हो जाती है। कांवड़ यात्रा के दौरान रास्तें में शौच, लघुशंका, जल-जलपान, भोजन आदि के बाद स्नान कर, कांवड़ को प्रणाम कर शुद्ध मन से पूनः यात्रा की जाती है। वैसे तो अनायास ही भक्तों का पूरा मन बाबा में लिन रहता है जय-जयकार, गीत-संगीत से लबालब मन बाबा बैद्यनाथ से अलग होता ही नहीं है। बोल-बम के नारा बा बाबा एक सहारा बा, बोल-बम बोल-बम। बोल भईया- बोल-बम, बोल बहिनी - बोल-बम, बोल चाची - बोल-बम, बोल चाचा - बोल-बम, बोल माई- बोल-बम, सब मिल बोल बोल-बम बोल-बम। हाथी न घोड़ा न कवनो सवारी.... पैदल ही अईबो तोर दुवारी ऐ भोलेनाथ पैदल ही अईबो तोर दुवारी..... । जय जयकार, गीत-संगीत से लबालब 120 किलोमीटर का सफ़र जैसे लगता है 20 किलोमीटर भी नहीं है। मन में बाबा के प्रति श्रद्धा-भक्ति का बना रहना यात्रा में कोई असुविधा उत्पन्न नही होने देता।
सुल्तानगंज बिहार उत्तरायर्ण गंगा, उत्तर दिशा की ओर बहने वाली गंगा, अजगैबीनाथ मंदिर से यात्रा प्रारंभ। कामराईस 06 किमी, कामराईस से असरगंज 07 किमी, क्रमशः तारापुर 08 किमी, रामपुर 07 किमी, कुमारसार नदी 08 किमी, चंदन नगर 10 किमी, जलेबिया मोड़ 08, सुईयां पहाड़ 08 किमी, अब्राखिया पहाड़ 08 किमी, कटोरिया 08 किमी, लक्ष्मण झूला 08 किमी, इनारावरण 08 किमी, भुलभुलैया 03 किमी, गोरियारी नदी 05 किमी, कलकतिया धर्मशाला 03 किमी, भूतबंग्ला 05 किमी, दर्शनिया 01 किमी, बाबा बैद्यनाथ कामना ज्योतिर्लिंग 01 किमी। कुल दूरी 105 किलोमीटर की निर्धारित है लेकिन यह यात्रा 120 किलोमीटर की होती है। मुख्य मार्गों को छुड़ाकर पैदल मार्ग घुमावदार है। पहले जब मंदिर में जल अर्पित कराया जाता था तब मंदिर प्रांगण में ही उपर नीचे कईयों किलोमीटर की यात्रा भीड़ को नियंत्रित करने के लिए करवा दिया जाता था। अब डोंगां व्यवस्था मंदिर के अंदर प्रवेश वर्जित होने से भीड़ एकत्रित नही हो रही लाईन में चलते-चलते डोंगे में जल डाल यात्रा पूरी हो जा रही है।