2023 : श्रावण सोमवार 8, मंगलवार 9, 19 साल बाद अद्भुत संयोग

भारत में मानसून आने का लगभग समय आषाढ़ महिने में अग्रेजी कलेंडर के अनुसार 15 जून से माना जाता है। ज्यादातर अब मानसूनी वारिस श्रावण मास से शुरू हो रहा है। इस 2023 वर्ष में श्रावण का महिना अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 4 जुलाई से शुरू हो 31 अगस्त को समाप्त होगा। श्रावण मास के आगमन पर रिमझिम वारिस के साथ लेट ही सही मानसून दस्तक दे दिया। इस 59 दिनों में श्रावण और अधिक मास या जानिए मलमास जुड़ा हुआ है। इस वर्ष भगवान शिव को समर्पित 59 दिनों में शिव भक्त भोलेनाथ को जलाभिषेक करेगें। देवालयों पर जोर शोर से कांवड़ यात्रियों शिव भक्तों की स्वागत कि तैयारी पूरी कि जा रही है। श्रद्धालुओं को शिवालयों में जलाभिषेक करने में असुविधा न हो पुख्ता इंतजाम किया जा रहा है। श्रावण मास में सोमवार का विशेष महत्व रहता है। सोमवार ब्रत शिव की अर्धांगिनी सहित शिव की उपासना के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। शिव आदि पुरुष और पार्वती जगत-जननी आदि माता की भक्ति पूजा-अर्चना के लिए श्रावण मास बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस वर्ष श्रावण सोमवार ब्रत रहने वाली सौभाग्यशाली स्त्री पुरुष 8 सोमवार ब्रत रखेंगी। शिव की अर्धांगिनी आदिशक्ति रुपा सती, पार्वतीजी नौ दुर्गा की ही रुप हैं 8 सोमवार का व्रत आदि शक्ति नौ दुर्गा सहित आदि पुरुष शिव को समर्पित होगा। यह अद्भुत संयोग इस वर्ष 19 साल बाद बना है। कुछ स्त्रियां श्रावण मंगलवार को भी ब्रत रखती हैं जिसे मंगला गौरी ब्रत कहा जाता है। मंगला गौरी ब्रत रखने वाली स्त्री-पुरुष इस अधिक मास सहित श्रावण में नौ ब्रत रखेंगी जो शिव प्रिये आदिशक्ति रुपा मंगला गौरी को समर्पित होगा।
4 जुलाई 2023 मंगलवार श्रावण मास प्रारंभ। 
इस बीच 8 सोमवार ब्रत दिन और दिनांक। 
10 जुलाई पहला श्रावण मास सोमवार पूजा-पाठ ब्रत।
17 जुलाई दूसरा श्रावण मास सोमवार पूजा-पाठ ब्रत।
24 जुलाई तीसरा मलमास सोमवार पूजा-पाठ ब्रत। 
31 जुलाई चौथा मलमास सोमवार पूजा-पाठ ब्रत।
07 अगस्त पांचवां मलमास सोमवार पूजा-पाठ ब्रत।
14 अगस्त छठवाँ मलमास सोमवार पूजा-पाठ ब्रत।
21 अगस्त सातवां श्रावण मास सोमवार पूजा-पाठ ब्रत।
28 अगस्त आठवां श्रावण मास सोमवार पूजा-पाठ ब्रत।
इस 4 जुलाई से 31 अगस्त श्रावण मास के बीच 18 जुलाई मंगलवार से मलमास शुरू 16 अगस्त बुधवार को समाप्त।
इस बीच 9 मंगलवार मंगला गौरी ब्रत दिन और दिनांक। 
04 जुलाई प्रथम श्रावण मास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत।
11 जुलाई दूसरा श्रावण मास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत। 
18 जुलाई तीसरा मलमास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत। 
25 जुलाई चौथा मलमास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत। 
01 अगस्त पांचवां मलमास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत। 
08 अगस्त छठवाँ मलमास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत। 
15 अगस्त सातवाँ मलमास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत। 
22 अगस्त आठवाँ श्रावण मास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत। 
29 अगस्त नौवां श्रावण मास मंगला गौरी पूजा-पाठ ब्रत।

शिव को सबसे प्रिय बेलपत्र है। पंचामृत से स्नान कराने के बाद पंचोपचार पूजन किया जाता है, पंचोपचार में गंध, पुष्प, दीप, धूप, नैवेद्य से पूजन करने के बाद भोलेनाथ को सतत जलधारा देना चाहिए, शिव के लिए जलधारा प्रिय मानी जाती है जलधारा जलाभिषेक के समय दशाक्षर मंत्र - ऊं नमो भगवते रूद्राय, का 108 बार शुद्ध मन से जप करना चाहिए। बेलपत्र, भांग, धतूरा, मदार पुष्प, गंगा जल आदि जो भी उपलब्ध हो प्रेमभाव से अर्पित करना चाहिए। इन्हे एक बेलपत्र और जल सबसे अधिक प्रिय है। 
श्रावण सोमवार ब्रत में भगवान शिव का ध्यान करें। ध्यान के साथ- ऊँ नमः शिवाय, मंत्र से माता पार्वती की पूजा करें। पूजा में श्रावण सोमवार ब्रत कथा सुनें इसके बाद आरती करें भोग लगाया गया प्रसाद बांटे।
श्रावण मंगलवार में सुबह उठकर स्नान करें साफ़ कपड़े पहने संभव हो तो भगवा वस्त्र जो शिव का प्रिय है। इसके बाद हाथ में जल लेकर ब्रत का संकल्प लें। पूजा स्थान पर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर माता पार्वती भोलेनाथ शिव और गणेश जी की प्रतिमा स्थापित करें यथा संभव पूजन सामग्री से पूजन करें। मंगला गौरी ब्रत उपासना करने से भगवान शिव माता पार्वती का कृपा प्राप्त होती है। इस ब्रत का फल विवाह और वैवाहिक जीवन की हर समस्या दूर हो जाती है विशेषकर जिनके कुंडली में मंगल ग्रह समस्या दे रहा है तो इस मंगला गौरी ब्रत से अत्यधिक लाभ मिलता है। स्त्री अपने पति की लंबी उम्र के लिए भी यह ब्रत करती हैं। 
देवाधिदेव महादेव कि पूजा-अर्चना करने वालों की संख्या श्रृष्टि में सबसे ज्यादा है इसका कारण महादेव की भक्ति में ज्यादा विधि-विधान नही प्रेम पूर्वक यथा शक्ति जो कुछ भी भोलेनाथ को अर्पित किया जाता है भोलेनाथ उसी से प्रसन्न रहते हैं। प्रेम पूर्वक एक बेलपत्र ही समर्पित कर देना इन्हें प्रसन्न करना है। भोलेनाथ की पूजा-अर्चना में सबसे कम खर्च होता है और सभी देवी-देवताओं से अधिक, जल्द मनोकामना पूरी करते हैं इसलिए इन्हें भोलेनाथ के नाम से जाना जाता है। शिव ही श्रृष्टि का बागडोर सम्भालने वाले आदि पुरुष देवाधिदेव महादेव हैं। जब स्यम् जगत-जननी ही इन्हें अपने पति रूप में धारण कि हैं तो स्वभाविक ही है सर्वशक्तिशाली सर्वश्रेष्ठ होना। स्त्री पुरुषों से अधिक सामर्थ्यवान होती है फिर भी अभिमान नही होता इन्हीं स्त्रियों से उत्पन्न स्त्रीयों से ही पुरूष पूर्ण हो अभिमानी हो जाता है इसका अनेकों शाक्य धर्म ग्रंथों में मिलता है। धर्म ग्रंथों में शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत बताया गया है जो पृथ्वी लोक पर ही स्थित है। सृष्टि में शिव रुप जगह-जगह ज्योर्तिलिंग प्राचीन काल से स्थापित है। ज्योतिर्लिंग में पूरे श्रावण मास शिव का साक्षात वास रहता है। वैसे तो शिव कण-कण में वास करते हैं। सबकुछ शिव से है और समय-समय पर सबकुछ शिव मे ही विलीन हो जाता है। इसीलिए इन्हें श्मशान वाशी भी कहा जाता है जहां जाने पर सत्य का ज्ञान कुछ समय के लिए हर मनुष्य को होता है वहां से वापस आने के साथ ही भूल जाता है कि राम का नाम ही सत्य है बाकी सब असत्य है। राम का तात्पर्य विष्णु जी जो श्रृष्टि के पालन हार हैं शिव प्रिय एक रूपा ब्रह्मा जो निर्माण कर्ता हैं और संचालक संहार कर्ता महेश ये तीनों त्रीदेव एक ही आद्या से उत्पन्न त्रिदेव हैं। इन सबमें अधिक सामर्थ्यवान शिव ही है क्यूंकि स्यम् शक्ति रुपी पार्वती इनकी अर्धांगिनी हैं। शक्ति के बिना शिव को शव के समान बताया गया है। इसका तात्पर्य है स्त्री के बिना पुरुष अधूरा है जैसे शक्ति रुपी पार्वती शिव को पूर्ण करती हैं ठीक वैसे ही हर पुरुष के जीवन में सुख-दुख की साथी अर्धांगिनी स्त्री अपने पति को पूर्ण करती हैं। शरीर शिव का रूप होता है और शरीर में जो उर्जा का श्रोत है वो शक्ति रुपा स्त्री का ही रूप है। आदि शक्ति द्वारा स्थापित श्रृष्टि में न तो पुरुष के बिना स्त्री पूर्ण है न स्त्री के बिना पुरुष। हर स्त्री पुरुष में शिव और शक्ति समाहित है। जब किसी भी शरीर से स्त्री रूपा शक्ति अलग होती है तो शरीर शव हो जाता है जिसे हम सब मृत्यु कहते हैं। 
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