आठवीं- ह्रदय शक्तिपीठ, देवी दुर्गा, के साथ ज्योतिर्लिंग भैरव बाबा बैद्यनाथ- देवघर झारखण्ड
सती के 51 शक्तिपीठों में आठवीं शक्तिपीठ के रूप में ह्रदय शक्तिपीठ यह विश्व का एकमात्र ऐसी शक्तिपीठ है, जहां शक्तिपीठ के साथ 12 ज्योतिर्लिंग में से एक नौवीं ज्योतिर्लिंग स्थापित है। अन्य 11 ज्योतिर्लिंग के पास इतना निकट कोई शक्तिपीठ नही है। ह्दय शक्तिपीठ के पास स्थापित ज्योतिर्लिंग को कामना लिंग के नाम से भी जाना जाता है। यह स्थान भारत देश में झारखण्ड राज्य के देवघर में स्थित है। यहां श्रावण मास में बाबा बैद्यनाथ धाम कि यात्रा स्वरूप विश्व के अनेक देशों से श्रद्धालु आते हैं और एशिया का सबसे बड़ा मेला लगता है। सती का ह्रदय भाग और कामना लिंग एक ही प्रांगण में स्थापित है। भक्त जनों की मनोकामना पूरी होने पर ज्यादातर भक्त शिव-पार्वती मंदिर के शिखर का गठजोड़ कराते हैं। यहां दर्शन मात्र से हर मनोकामना पूरी होती है। मां का ह्रदय अपने पुत्र-पुत्रीयों के लिए सदैव भावुक होता है, जगत-जननी के लिए हम सब पुत्र-पुत्री ही हैं। मातृत्व प्रेम से कोई भी वंचित नहीं होता। श्रद्धापूर्वक अपनी ह्रदय की बात इस ह्रदय शक्तिपीठ व कामना लिंग दर्शन पूजन के साथ कोई भी रखता है तो निदान भी शिव, शक्ति द्वारा होता है। शिव प्रिय श्रावण मास में बाबा बैद्यनाथ धाम स्थित ह्रदय शक्तिपीठ पर शिव-शक्ति की कृपा से हम भगवान चित्रगुप्त वंशज अमित श्रीवास्तव की कलम अग्रसर है। अब तक आप सब ने हमारे शक्तिपीठ लेखनी में क्रमशः पढ़ा...
प्रथम शक्तिपीठ कामाख्या जहां सती का योनी भाग स्थापित है। इस शक्तिपीठ को श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति धाम माना जाता है, सम्पूर्ण शक्तिपीठों में यह सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ है। इसका प्रमाण देवासुर संग्राम में दैत्य गुरू शुक्राचार्य से भी मिला है, नरकासुर इसी सर्वशक्तिशाली शक्तिपीठ को, दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर नष्ट करने आया था। यहां दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को नरक मार्ग से नही आना चाहिए जो देवी के कहने पर नरकासुर अर्ध निर्माण किया है। शुक्राचार्य कामाख्या शक्तिपीठ को नष्ट करने के बाद सभी शक्तिपीठों का अस्तित्व स्वतः समाप्त होने की बात कही थी। कामाख्या शक्तिपीठ, निकट त्रिया राज्य से सिद्धि प्राप्त कईयों वर्णन अपने प्रथम शक्तिपीठ लेखनी - कामाख्या शक्तिपीठ श्रृष्टि का केंद्र विन्दु मुक्ति का द्वार में किया हूं। गुप्त रहस्यों को उजागर करते माता की महिमा का वर्णन हमारे लेखनी से समाज को प्राप्त हो और माता के प्रति आस्था व्याप्त हो इस उदेश्य को ध्यान में रखते हुए आठवीं ह्रदय शक्तिपीठ झारखण्ड राज्य के देवघर में बाबा बैद्यनाथ नौवीं ज्योतिर्लिंग के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत हूं।
दूसरे शक्तिपीठ के रूप में झारखंड राज्य के रजरप्पा में, दस महाविद्याओं में से एक छठवीं महाविद्या धारण करने वाली, नग्न देवी असुरों का संहार करने के बाद अपने ही सिर को काटकर सहचरीयों संग अपना रुधीर पान कर भुख को शांत करने वाली छिन्नमस्तिका भवानी, इस भवानी को जैसी मनोकामना के साथ पूजा जाता है वैसा ही फल प्राप्त होता है। जाकी रही भावना जैसी। प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।। राम चरित्र मानस के बालकांड की यह चौपाई नग्न रुप छिन्नमस्तिका भवानी की महिमा पर सटीक बैठती है। जिसकी जैसी भावना होती है छिन्नमस्तिका नग्न देवी उसी रूप में मनोरथ पूरन करती है।
तीसरी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित हिंगलाज भवानी उग्रतारा शक्तिपीठ मोक्ष प्रदान करने वाली। हिंगलाज शक्तिपीठ पर पूजन मुस्लिम समुदाय भी करता है, मुस्लिम समुदाय अपनी नानी पीर के रूप में मानता है। यहां दर्शन करने वाली स्त्रीयों को हजियाजी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार यहां आने वाले भक्तों का आत्मा शुद्ध और पवित्र हो मोंक्ष का मार्ग सुलभ हो जाता है।
चौथी बाबा विश्वनाथ की पावन नगरी काशी में मणिकर्णिका घाट पर स्थापित शक्तिपीठ जो जन्म मरण से मुक्ति प्रदान करने वाली है। काशी में विराजमान बाबा विश्वनाथ जी का दर्शन करने वाले श्रद्धालु जन देवाधिदेव महादेव का प्रिय मास श्रावण में मणिकर्णिका घाट पर विशालाक्षी शक्तिपीठ का दर्शन कर पूर्ण रूप से अपनी मनोकामना पूरी करें।
पांचवीं त्रिपुरमालिनी वक्ष शक्तिपीठ जालंधर पंजाब राज्य में एकमात्र शक्तिपीठ, जिनका इतिहास शिव पुत्र असुर राज जलंधर, पत्नी वृंदा के साथ विष्णु द्वारा छल से पतिव्रत धर्म नष्ट कर खुद वृंदा द्वारा श्रापित हो शालिग्राम पत्थर वन, वृंदा द्वारा इस पृथ्वी पर औषधि रुप में तुलसी का पौधा बन तुलसी और शालिग्राम विवाह से जूड़ा है।
छठवीं दक्षिणेस्वरी काली रुपी कामाक्षीदेवी पाताल लोक, युगाद्या शक्तिपीठ क्षीरग्राम वर्धमान बंगाल, इसी शक्तिपीठ मे सती के दाहिने पैर का अंगुठा जहां माता का तंत्र बसता है.. अहिरावण द्वारा पाताल लोक में स्थापित था, अधर्म पर धर्म की विजय पताका लहरा कामाक्षीदेवी धर्म युद्ध में सीता और राम की लंका में सहयोगी बन युगाद्या शक्तिपीठ - क्षीरग्राम में भैरव क्षीरकंटक, हनुमानजी द्वारा स्थापित हुईं। पाताल लोक अहिरावण द्वारा स्थापित कामाक्षीदेवी भद्रकाली ही सीता मे समाहित होकर सहस्त्ररावण का वध कि थी।
सातवीं शक्तिपीठ के रूप में बंगाल के कोलकात्ता कालीघाट स्थित महाकाली का वर्णन आद्या अंश सती के दाहिने पैर की अंगुठा छोड़ शेष चार उंगलियों पर किया हूं। यहां की शक्ति कालिका और भैरव नकुलेश हैं।
समस्त कामनाओं को पूरा करने वाली 10 महाविद्याओं में देवी काली प्रथम महाविद्या धारण करने वाली हैं, शिव की चौथी अर्धांगिनी काली ही हैं। काली को 108 नामों से जाना जाता है। काली का चार रुप है भद्रकाली, दक्षिणेस्वरी काली, मात्रृकाली, श्मशानकाली। माता का यह रूप साक्षात तथा जाग्रत अवस्था में है। दैत्यों का विनाश करने के लिए माता ने यह रूप समय-समय पर धारण किया। इनका स्वरूप अत्यंत भयानक मुण्डमाल धारण किये खड्ग-खप्पर हाथ में उठाये हुये मां अपने भक्तों को अभय दान देती है। ये रक्तबीज तथा चण्ड व मुण्ड जैसे महादैत्यों का नाश करने वाली मां शिवप्रिया साक्षात चामुण्डा का रूप है। इनका क्रोध शांत करने के लिए स्वयं महादेव को इनके चरणों के आगे लेटना पड़ा था।
दस महाविद्याऔं से सम्बंधित पुराणों में एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक समय की बात है, शिव जी के किसी बात से माता पार्वती रूष्ट हो गईं। माता को इतना क्रोध आया कि क्रोध से शरीर काला पड़ने लगा। यह देखकर माता के क्रोध को कम करने कि सोच लिए शिव जी माता के पास से उठे और किसी अन्य स्थान की ओर जाने लगे। अभी वे थोड़ा ही चले थे तभी शिव जी अपने सामने मां के दिव्य स्वरूप को देखा। फिर जब दूसरी दिशा की ओर मुड़े तो दूसरा तेजस्वी रूप दिखाई दिया फिर एक-एक करके महादेव दसों दिशाओं में गये तो प्रत्येक दिशा मेें माता का ही विराट स्वरूप खड़ा दिखाई दिया। ये देखकर महादेव आश्चर्य में पड़ गये और सोचने लगे कि यह देवी पार्वती की माया तो नहीं है ?
तब शिव जी माता पार्वती से इस रहस्य को पूछा तो माता ने कहा कि आपके समक्ष काले स्वरूप में सिद्धिदात्री काली हैं, ऊपर की ओर नीलवर्णा देवी तारा हैं, पश्चिम में कटे सिर को हाथ में उठाये मोक्ष प्रदान करने वाली देवी छिन्नमस्तिका, बांई और भुवनेश्वरी, पीछे शत्रु का स्तम्भन करने वाली देवी बगलामुखी, अग्निकोण में धूमावती, वायव्य कोण में मोहिनी विद्या वाली मातंगी, ईशान कोण में षोडशी और सामने भैरवी रूप में स्वयं मैं उपस्थित हूं। माता ने कहा कि मेरे इन स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना करने से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष की प्राप्ति सहजता ही हो जाती है। इसके बाद महादेव द्वारा माता पार्वती से निवेदन करने पर ये समस्त दस महाविद्या माता काली में समाकर एकरूप हो गईं।
शक्तिपीठ कि उत्पत्ति
आदिशक्ति जगत जननी से उत्पन्न त्रिदेव में महादेव कि अर्धांगिनी जगत-जननी को पृथ्वी सम्राट दक्ष प्रजापति अपनी तपस्या से प्रसन्न कर पुत्री रुप में प्राप्ति का वरदान मांगा। जगत-जननी दक्ष प्रजापति को पुत्री रुप में प्राप्त हुईं जिनका नाम सती रखा गया। विवाह योग्य होने पर दक्ष प्रजापति अपने पिता ब्रह्म देव से सती के लिए सुयोग्य वर की बात रखी तब ब्रह्म देव ने कहा सती स्यम् आदिशक्ति जगत-जननी हैं इनके विवाह के लिए शिव ही सुयोग्य वर हैं। दक्ष प्रजापति शिव से ईर्ष्या रखता था इसलिए सती का विवाह शिव के साथ करने के लिए तैयार नही था। सती विष्णु और देवर्षि नारद से प्रभावित हो शिव को अपने पति रुप में पाने के लिए कठोर तपस्या करने लगी। दक्ष प्रजापति के आज्ञा के विरुद्ध सती शिव से गन्धर्व विवाह की, जिस कारण दक्ष प्रजापति अपने पुत्री सती का त्याग कर दिया। सती-शिव, विवाह के बाद दक्ष प्रजापति अपने यहां यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, शिव-सती को आमंत्रण नही दिया। सभी देवी-देवताओं को जाते देख सती शिव से अपने पिता के घर जाने की बात कही, शिव द्वारा बहुत समझाने के बाद भी सती हठपूर्वक शिव से आज्ञा ले, शिव गण के साथ चली गई। माता व बहनों से मिल ही रही थी कि, दक्ष प्रजापति की नज़र सती पर जा पड़ी और सती सहित शिव को दक्ष प्रजापति ने अपमान जनक शब्द कहा। यज्ञ में शिव का स्थान न देख सती ने इसका कारण पूछा तो दक्ष और भी अपमानित करने लगा। पती की निंदा सती को सहन नहीं हुआ तब सती अपने को दक्ष पुत्री दक्क्ष्राणी मान जीवित रहने से इंकार कर शरीर त्याग कि प्रतिज्ञा की, आज के बाद मुझे दक्ष पुत्री दक्क्ष्राणी के नाम से नही जाना जायेगा। देवी सती के दाहिनी पैर के अंगुठे में तंत्र विद्या था से योगअग्नि प्रज्वलित कर सती दक्ष पुत्री के रूप में प्राप्त शरीर का त्याग कर दीं। यह सूचना पाकर सती के वियोग में शिव व्याकुल हो सती गये। भद्र काल को उत्पन्न किया साथ ही भद्रकाली का प्रादुर्भाव हुआ, शिव के आज्ञा से दक्ष प्रजापति का वध भद्र काल और भद्रकाली ने जाकर किया। सभी देवताओं के आग्रह पर दक्ष को अज का मुख प्रदान कर शिव ने जीवन दान दिया और सती को गोद में ले अपनी शुध्द-बुध खो विचलन करने लगे। आदिशक्ति से मार्गदर्शन पा विष्णु ने सती के शरीर पर चक्र सुदर्शन छोड़ दिया। जिससे सती का शरीर, वस्त्र, आभुषण "देवी पुराण के अनुसार" 51 भागों में विभाजित हो शक्तिपीठ के रूप में अवतरित हुईं। सती का ह्रदय भाग यहीं देवघर में स्थापित हुआ, जो ह्रदय शक्तिपीठ, देवी दुर्गा, आदि दुर्गा नाम से जाना है, यहां शक्तिपीठ के रखवाले भैरव बाबा बैद्यनाथ हैं। जो नौवीं ज्योतिर्लिंग कामना लिंग बाबा बैद्यनाथ नाम से प्रसिद्ध हैं।