छिन्नमस्तिका चालिसा
निज मस्तक को काट कर, लिया हाथ में थाम।
कमलासन तेरे पग तले, द्रवित हुआ रतिकाम।।
कलयुग का मुख्य धाम है, तीनों लोक में नाम।
छिन्नमस्तिका नग्न रुप को, बारम्बार प्रणाम।।
छिन्नमस्तिका भैरवी भवानी। दक्ष सुता शिव पटरानी।।
रजरप्पा में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित जात बखानी।।
झारखंड की मान बढ़ाती। शक्तिपीठ में शक्ति दिखाती।।
रज राजा के सपने में आई। अपनी गाथा तू उसे सुनाई।।
तंत्र-मंत्र से करे जो पूजा। फल तुमसा कोई दे नहीं दूजा।।
जैसा जो निज ध्यान लगाया। वैसा मन वांछित फल पाया।।
मनोकामना तूं पूरी करती। भक्तों की तुम झोली भरती।।
आदि अंत तुम्हीं हो माता। ब्रह्मा विष्णु शिव भी ध्याता।।
रवि मंडल मध्य योनि मोहक। खड्ग खपड हाथे सोभत।।
मुंडो की माला वक्ष बिराजे। गले पर शिव सर्प बिराजत।।
योगी सुरमुनी कहत पुकारे। योग नहो बिन शक्ति तुम्हारे।।
रोगनाशनी कुंड बिराजत। पापनासनी की डंका बाजत।।
शक्ति रुप में तुम्हें ही पाया। शिव दूजा नही तुम्हें अपनाया।।
सती रूप शिव किया धारण। बन गईं प्रलय की कारण।।
दक्ष यज्ञ में बिना बुलावा। चली गई मात घर न भावा।।
तुम बिन नही कोई है दूजा। तीनों लोक करें तेरी पूजा।।
काम-रती में हो शक्ति रुपा। तुम्हीं जगत जननी स्वरूपा।।
जगत जननी जगदम्बा हो। कलयुग की तुम अम्बा हो।।
अपने गले खड्ग चला दी। छिन्नमस्तिका रूप दिखा दी।।
तीन धार खुद रूधिर बहा दी। सखियों की भूख मिटा दी।।
रूधिर पान तुम करती माता। देख रूप मन डर जाता।।
तरुण रुप नग्न देवी की। करू याचना छिन्न मस्तक की।।
गुड़हल फूल तुम्हें मन भावे। सुमन कनेर चरण रज पावे।।
रजरप्पा में ध्यान लगाया। सब सुख भोग परम सुख पाया।।
परशुराम तेरी विद्या पाया। बल कि थाह कोई न पाया।।
चन्द्रमुखी हो तुम जग माता। तुझसे पार कोई नहीं पाता।।
प्रलय काल की सुन्दरी बाला। रूद्र भैरव तेरा रखवाला।।
किया कामना जिसने जैसा। फल पाया जग में सब वैसा।।
रोग नाश तुम करो भवानी। बल बुद्धी दो मै हूं अज्ञानी।।
तु दुखियों की दुख मिटाती। तू सत्तियो की लाज बचाती।।
चरण ध्यान जो तेरा करता। दुख-दरिद्र निकट न रहता।।
असुरों का तारण करती। छठवीं महाविद्या धारण करती।।
बढ़े रोग ऋण होय अपारा। हो कष्ट मन शिथिल सारा।।
छिन्नमस्तिका पाठ कराओ। नित्य यह चालीसा गाओ।।
करो उपासना दिब्य देवी की। अमित मनोरथ पूरन की।।
रजरप्पा का कण-कण प्यारा। दामोदर की निर्मल धारा।।
संगम बनी भैरवी-भवानी। छिन्नमस्तिका अमित कहानी।।
सब पर कृपा करो महारानी। कालरूप में तुम्हीं भवानी।।
तु सर्वमंगला मंगलकारी। आदि शक्ति शिव शंकर प्यारी।।
भैरवी दामोदर संगम पर, सखियों संग की स्नान।
भूखी जया-विजया संग, की नीज शोणित पान।।
तुम अपने नीज दाहिने, शिव रूद्र को दी स्थान।
छिन्नमस्तिका दिब्य रुप को, बारम्बार प्रणाम।।
मंत्र- श्रीं ह्नीं ऎं वज्र वैरोचानियै ह्नीं फट स्वाहा।।
अमित श्रीवास्तव