मनुष्य- देव बने या दानव, ईश्वर दोषी नही

मनुष्य- देव बने या दानव, ईश्वर दोषी नही 

अमित श्रीवास्तव- संपादक सलाहकार
ईश्वर जीव को मनुष्य को इंसान बनाकर धराधाम पर भेजता है। वह न हिन्दू बनाकर और न मुसलमान न सिख ईसाई बनाकर भेजता है बल्कि अपने यहाँ से वह पाक साफ इंसान बनाकर भेजता है। स्त्री के गर्भ में आने, गर्भ में पलने और पैदा होने का एक ही मार्ग होता है अलग अलग नहीं होता। इसी तरह मनुष्य का खाना सोना रहना शरीर की बनावट आदि सब कुछ एक जैसा होता है और उसमें कोई अंतर नहीं होता। मनुष्य हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई पैदा होने के बाद बनता है और संस्कारों में भिन्नता पैदा होने के पश्चात आती है। ईश्वर एक होता है और वही सभी मनुष्यों का पालनहार होता है। कोई उसे भगवान तो कोई अल्लाह तो कोई ईसा मसीह कहता है तथा हिन्दू उसे ज्योति तो मुसलमान उसे नूर तो ईसाई उसे मूनलाइट कहते हैं। तीनों का मतलब एक रोशनी होता है और तीनों निराकार होते हैं। ईश्वर मनुष्य को निर्विकार अपने यहाँ से धरती पर भेजता है और मनुष्य में विकार पैदा होने के बाद आते हैं। जो लोग ईश्वर व मजहब के नाम पर भेदभाव करते हैं वह कभी ईश्वर के प्रिय नहीं बन सकते हैं। जो लोग धर्म के नाम पर झगड़ा करते या करवाते हैं उन्हें धर्म का ज्ञान ही नहीं होता है। जिन्हें धर्म व धार्मिक ईश्वरीय ज्ञान होता है वह सभी मनुष्यों को एक समान एक पिता की संतान मानते हैं। दुनिया में इंसानी रिश्तों से बड़ा कोई दूसरा रिश्ता और परोपकार से बड़ा कोई दूसरा मानव धर्म नहीं होता है। मनुष्य भी दो तरह के होते हैं और एक को इंसान तो दूसरे को शैतान या दानव कहते हैं। मनुष्य अपने कर्मों से इंसान बनता और अपने ही कर्मों से वह इंसान होते हुये भी शैतान बन जाता है। ध्यान रखें कि ईश्वर सभी मनुष्य को इंसान बनाकर भेजता है शैतानियत यहाँ आने के बाद पैदा होती है। सभी धर्मों ग्रंथों में भी एक जैसी शिक्षा दी गयी है और मानवता को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। इंसान का शैतान होना मनुष्य जीवन की गिरावट होता है जबकि इंसान का इंसान होना उसका मूल स्वरूप होता है। मनुष्य अपने कर्मों से महामानव देवमानव बन जाता है और अपने कर्मों से ही वह मानव से दानव बन जाता है। कोई जरूरी नहीं हैं कि शैतान का बाप भी शैतान हो क्योंकि इतिहास साक्षी है कि रावण के पिता दानवकुल के नहीं बल्कि देवकुल का सदाचारी श्रृषि ईश्वर भक्त थे। कंस के पिता उग्रसेन शैतान नहीं थे लेकिन कंस ने शैतानियत की हद पार कर दी। ध्रुव व भक्त प्रहलाद के पिता जरूर दैत्य कुल के थे लेकिन वह दोनों उनके आचरण के विपरीत देवकुल जैसे थे।
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