कुदरती रिश्ता- रुहानी रिस्ते का बेवफा विन्दु ने कत्ल कर डाली
रुहानी रिस्ता
रुहानी रिस्ते का बेवफा विन्दु ने कत्ल कर डाली,
अपने ही दगाबाज़ी से दद्दू का बुरा हस्ल कर डाली।
बचपन से ही खोई रहती थी दद्दू के जिन सपनों में,
कुदरती करिश्मा से अपने सपने को पूरा कर डाली।।
कुदरत ने मिलाया अधुरी ख्वाहिश पूरी करने को,
जीवन भर एक दूसरे का ख्याल रखने को।
दद्दू ने विन्दु की अधुरी इच्छा पूरी कर डाली,
विन्दु ने अब दद्दू को अपने से किनारे कर डाली।
चुटकी भर सिन्दूर रेशमी धागे का बुरा हस्ल कर डाली,
पांच का सिंदूर दस रुपये मंगलसूत्र किमत बता डाली।
अपने वो दगाबाज़ी से दद्दू का बुरा हस्ल कर डाली,
धोखेबाजी की खंजर से दद्दू का कत्ल कर डाली।
रुहानी रिस्ते का बेवफा विन्दु ने कत्ल कर डाली,
अपने ही दगाबाज़ी से दद्दू का बुरा हस्ल कर डाली।
बचपन से ही खोई रहती थी दद्दू के जिन सपनों में,
कुदरती करिश्मा से अपने सपने को पूरा कर डाली।।
वो कहती थी इधर-उधर चाहें जो कुछ हो जाए,
नही छोड़ूंगी सनम तुझे चाहें मेरी मौत हो जाए।
अपनी खुशी की खातिर बदल गई है अब वो,
जो सोचा नहीं था दद्दू सब कर रही है अब वो।
बेवफा विन्दु ने सामाजिक रिश्ता सहेज डाली,
कुदरती रिश्ते का कत्ल कर दफ्न कर डाली।
रुहानी रिस्ते का बेवफा विन्दु ने कत्ल कर डाली,
अपने ही दगाबाज़ी से दद्दू का बुरा हस्ल कर डाली।
बचपन से ही खोई रहती थी दद्दू के जिन सपनों में,
कुदरती करिश्मा से अपने सपने को पूरा कर डाली।।
कुदरती रिश्ते को देंगी धोखा सोचा नहीं था सपने में,
अब कैसे बदल रही मुझे देखी नही अब अपने में।
सामाजिक रिश्ते से नही था नाता बताती थी वो,
जिसको लेकर नही सोई उसे सुलाती है अब वो।
कैसे वो बदल गई सब खुद बताती है अब वो,
दोनों पतियों के साथ रिस्ता निभाती थी कैसे वो।
धोखेबाजी की खंजर रुहानी रिस्ता में भोंक डाली,
जो नहीं था उसका अपना उसे खुद को सौंप डाली।
रुहानी रिस्ते का बेवफा विन्दु ने कत्ल कर डाली,
अपने ही दगाबाज़ी से दद्दू का बुरा हस्ल कर डाली।
बचपन से ही खोई रहती थी दद्दू के जिन सपनों में,
कुदरती करिश्मा से अपने सपने को पूरा कर डाली।।
-अमित श्रीवास्तव