गंगासागर, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग आदि की महिमा
महाभारत वनपर्व के 'तीर्थयात्रापर्व' के अंतर्गत अध्याय 85 में गंगासागर, अयोध्या, चित्रकूट, प्रयाग आदि विभिन्न तीर्थों की महिमा के बारे में बताया गया है, जिसका उल्लेख निम्न प्रकार है-
पुलस्त्यजी कहते हैं- भीष्म! तदनन्तर प्रातः संध्या के समय उत्तम संवेद्यतीर्थ में जाकर स्नान करने से मनुष्य विद्यालाभ करता है, इसमें संशय नहीं है।
राजन्! पूर्वकाल में श्रीराम प्रभाव से जो तीर्थ प्रकट हुआ, उसका नाम लौहित्यतीर्थ है। उसमें जाकर स्नान करने से मनुष्य को बहुत-सी सुवर्णराशि प्राप्त होती है। करतोया में जाकर स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। वह ब्रह्माजी द्वारा की हुई व्यवस्था है।
राजेन्द्र! वहाँ गंगासागर संगम में स्नान करने से दस अश्वमेध यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है, ऐसा मनीषी पुरुष कहते हैं। राजन! जो मानव गंगासागर संगम में गंगा के दूसरे पार पहुँचकर स्नान करता है और तीन रात वहाँ निवास करता है, वह सब पापों से छूट जाता है। तदनन्तर सब पापों से छुड़ाने वाली वैतरणी की यात्रा करे। वहाँ विरजतीर्थ में जाकर स्नान करने से मनुष्य चन्द्रमा के समान प्रकाशित होता है। उसका पुण्यमय कुछ संसार सागर से तर जाता है। वह अपने सब पापों का नाश कर देता है और सहस्र गो दान का फल प्राप्त करके अपने कुल को पवित्र कर देता है। शोण और ज्योतिथ्या के संगम में स्नान करके जितेन्द्रिय एवं पवित्र पुरुष यदि देवताओं और पितरों का तर्पण करे तो वह अग्निष्टोम यज्ञ का फल पाता है।
कुरुनन्दन! शोण और नर्मदा के उत्पत्तिस्थान वंशनुल्मतीर्थ में स्नान करके तीर्थयात्री अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। नरेश्वर! कोसला (अयोध्या) में ऋतभतीर्थ में जाकर स्नानपूर्वक तीन रात उपवास करने वाला मानव वाजपेय यज्ञ का फल पाता है इतना ही नहीं, वह सहस्र गो दान का फल पाता और अपने कुल का भी उद्धार कर देता है। कोसला नगरी (अयोध्या) में जाकर कालतीर्थ में स्नान करे ऐसा करने से ग्यारह वृषभ-दान का फल मिलता है, इसमें संशय नहीं है। पुष्पवती में स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य सहस्र गो दान का फल पाता और अपने कुल को पवित्र कर देता है।भरतकुलभूषण! तदनन्तर तदरिकातीर्थ में स्नान करके मनुष्य दीर्घायु पाता और स्वर्गलोक में जाता है। तत्पश्चात् चम्पा में जाकर भागीरथी में तर्पण करे और दण्डनामक तीर्थ में जाकर सहस्र गो दान का फल प्राप्त करे। तदनन्तर पुण्यशोभिता पुण्यमयी लपेटिका में जाकर स्नान करे। ऐसा करने से तीर्थयात्री वाजपेययज्ञ का फल पाता और सम्पूर्ण देवताओं द्वारा पूजित होता है। इसके बाद परशुराम सेवित महेन्द्र पर्वत पर जाकर वहाँ रामतीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। कुरूश्रेष्ठ कुरुनन्दन! वहीं मतंग का केन्द्र है, उसमें स्नान करने से मनुष्य को सहस्र गो दान का फल मिलता है। श्री पर्वत पर जाकर वहाँ की नदी के तट पर स्नान करे। वहाँ भगवान शंकर की पूजा करके मनुष्य को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। श्रीपर्वत पर देवी पार्वती के साथ महातेजस्वी बड़ी प्रसन्नता के साथ निवास करते हैं। देवताओं के साथ ब्रह्माजी भी यहां रहते हैं। यहां देवकुण्ड में स्नान करके पवित्र हो जितात्मा पुरुष अश्वमेध का फल पाता और परम सिद्धि लाभ करता है। पाड्यदेश में देवपूजित ऋषभ पर्वत पर जाकर तीर्थयात्री वाजपेययज्ञ का फल पाता है और स्वर्गलोक में आनंदित होता है। राजन! तदनन्तर अप्सराओं से आवृत कावेरी नदी की यात्रा करे। वहाँ स्नान करने से मनुष्य सहस्र गो दान का फल पाता है। राजेन्द्र! तत्पश्चात् समुद्र के तट पर विद्यमान कन्यातीर्थ (कन्याकुमारी) में जाकर स्नान करे। उस तीर्थ में स्नान करते ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। महाराज! इसके बाद समुद्र के मध्य में विद्यमान त्रिभुवन विख्यात अखिल लोकवंदित गोकर्णतीर्थ में जाकर स्नान करे। जहाँ ब्रह्मा आदि देवता, तपोधन महर्षि, भूत, यक्ष, पिशाच, किन्नर, महानाग, सिद्ध, चारण, गन्धर्व, मनुष्य, सर्प, नदी, समुद्र और पर्वत-ये सभी उमावल्लभ भगवान शंकर की उपासना करते हैं। वहाँ भगवान शिव की पूजा करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है और गणपति पद प्राप्त कर लेता है। वहाँ बारह रात निवास करने से मनुष्य का अन्तःकरण पवित्र हो जाता है। वहीं गायत्री का त्रिलोकपूजित स्थान है। वहाँ तीन रात निवास करने वाला पुरुष सहस्र गो दान का फल प्राप्त करता है। नरेश्वर! ब्राह्मणों की पहचान के लिये वहाँ प्रत्यक्ष उदाहरण है। राजन! जो वर्णसंकर योनि में उत्पन्न हुआ है, वह यदि गायन्तीमंत्र का पाठ करता है, तो उसके मुख से वह गाथा या गीत की तरह स्वर और वर्णों के नियम से रहित होकर निकलती है अर्थात वह गायत्री का उच्चारण ठीक नहीं कर सकता। जो सर्वथा ब्राह्मण नहीं है, ऐसा मनुष्य यदि वहाँ गायत्रीमन्त्र का पाठ करे तो वहाँ वह मन्त्र लुप्त हो जाता हैं अर्थात उसे भूल जाता है। राजन! वहाँ ब्रह्मर्षि संवर्त की दुर्लभ बावली है। उसमें स्नान करके मनुष्य सुन्दर रूप का भागी और सौभाग्यशाली होता है। तदनन्तर वेणा नदी के तट पर जा कर तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य (मृत्यु के पश्चात) मोर और हंसो से जुता हुआ विमान को प्राप्त करता है। तत्पश्चात् सदा सिद्ध पुरुषों से सेवित गोदावरी के तट पर जाकर स्नान करने से तीर्थयात्री गोमेध यज्ञ का फल पाता है और वासुकि के लोक में जाता है। वेणासंगम में स्नान करके मनुष्य अश्वमेध के फल का भागी होता है। वरदासंगमतीर्थ में स्नान करने से सहस्र गो दान का फल मिलता है। ब्रह्मस्थान में जाकर तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य सहस्र गो दान का फल पाता और स्वर्गलोक में जाता है। कुरुपल्वनतीर्थ में जाकर स्नान करके ब्रह्मचर्य पालन पूर्वक एकाग्रचित्त हो तीन रात निवास करने वाला पुरुष अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। तदनन्तर कृष्ण वेणा के जल से उत्पन्न हुए रमणीय देवकुण्ड में, जिसे जातिस्मर ह्नद कहते हैं, स्नान करे। वहाँ जाने मात्र से यात्री अग्निष्टोमयज्ञ का फल पा लेता है। तत्पश्चात् सर्वदेवह्रद में स्नान करने से सहस्र गो दान का फल मिलता है। तदनन्तर परम पुण्यमयी वापी और सरिताओं में श्रेष्ठ पयोष्णी में जाकर स्नान करे और देवताओं तथा पितरों के पूजन में तत्पर रहे, ऐसा करने से तीर्थसेवी को सहस्र गोदान का फल मिलता है।
राजन! भरतनन्दन! जो दण्डकारण्य में जाकर स्नान करता है, उसे स्नान करने मात्र से सहस्र गो दान का फल प्राप्त होता है। शरभंग मुनि तथा महात्मा शुक के आश्रम पर जाने से मनुष्य कभी दुर्गति में नहीं पड़ता और अपने कुल को पवित्र कर देता है। तदनन्तर परशुराम सेवित शूर्पारकतीर्थ की यात्रा करे। वहाँ रामतीर्थ में स्नान करने से मनुष्य को प्रचुर सुवर्णराशि की प्राप्ति होती है।सप्तगोदावरतीर्थ में स्नान करके नियम-पालन पूर्वक नियमित भोजन करने वाला पुरुष महान पुण्य लाभ करता है और देवलोक में जाता है। तत्पश्चात् नियम पालन के साथ साथ नियमित आहार ग्रहण करने वाला मानव देव पथ में जाकर देवसत्र का जो पुण्य है, उसे पा लेता है। तुंगकाण्य में जाकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए इन्द्रियों को अपने वश में रखे। प्राचीन काल में वहाँ सारस्वत ऋषि ने अन्य ऋषियों को वेदों का अध्ययन कराया था। एक समय उन ऋषियों को सारा वेद भूल गया। इस प्रकार वेदों के नष्ट होने (भूल जाने) पर अंगिरा मुनि का पुत्र ऋषियों के उत्तरीय वस्त्रों (चादरों) में छिप कर सुख पूर्वक बैठ गया। नियम के अनुसार ओम कार का ठीक-ठीक उच्चारण होने पर, जिसने पूर्वकाल में जिस वेद का अध्ययन एवं अभ्यास किया था, उसे वह सब स्मरण हो आया। उस समय वहाँ बहुत से ऋषि, देवता, वरुण, अग्नि, प्रजापति, भगवान नारायण और महादेवजी भी उपस्थित थे। महातेजस्वी भगवान ब्रह्मा ने देवताओं के साथ जाकर परम कांतिमान भृगु को यज्ञ कराने के काम पर नियुक्त किया। तदनन्तर भगवान भृगु ने वहाँ सब ऋषियों के यहाँ शास्त्रीय विधि के अनुसार पुनः भलीभाँति अग्निस्थापन कराया। उस समय आज्यभाग के द्वारा विधिपूर्वक अग्नि को तृप्त करके सब देवता और ऋषि क्रमशः अपने-अपने स्थान को चले गये। नृपश्रेष्ठ! उस तुंगकारण्य में प्रवेश करते ही स्त्री या पुरुष सबके पाप नष्ट हो जाते हैं। धीर पुरुष को चाहये कि वह नियम पालन पूर्वक नियमित भोजन करते हुए एक मास तक वहाँ रहे।
राजन! ऐसा करने वाला तीर्थयात्री ब्रह्मलोक में जाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। तत्पश्चात् मेधाविकतीर्थ में जाकर देवताओं और पितरों का तर्पण करे, ऐसा करने वाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञ का फल पाता है और स्मृति एवं बुद्धि को प्राप्त कर लेता है। इस तीर्थ में कालंजर नामक लोकविख्यात पर्वत है, वहाँ देवह्रद नामक तीर्थ में स्नान करने से सहस्र गो दान का फल मिलता है। राजन! जो कालंजर पर्वत पर स्नान करके वहाँ साधना करता है, वह मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है, इसमें संशय नहीं है। राजन्! तदनन्तर पर्वतश्रेष्ठ चित्रकूट में सब पापों का नाश करने वाली मन्दाकिनी के तट पर पहुँचकर उसमें स्नान करे और देवताओं तथा पितरों की पूजा में लग जाय। इससे वह अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और परम गति को प्राप्त होता है।
धर्मज्ञनरेश! तत्पश्चात् तीर्थयात्री परम उत्तम भतृस्थान की यात्रा करे, जहाँ महासेन कार्तिकेय जी निवास करते हैं। नृपश्रेष्ठ! वहाँ जाने मात्र से सिद्धि प्राप्त होती है। कोटि-तीर्थ में स्नान करके मनुष्य सहस्र गो दान का फल पाता है। उसकी परिक्रमा करके तीर्थयात्री मानव ज्येष्ठस्थान को जाय। वहाँ महादेव जी का दर्शन-पूजन करने से वह चन्द्रमा के समान प्रकाशित होता है। भरतकुलभूषण महाराज युधिष्ठिर! वहाँ एक कूप है, जिसमें चारों समुद्र निवास करते हैं। राजेन्द्र! उसमें स्नान करके देवताओं और पितरों के पूजन तत्पर रहने वाला जितात्मा पुरुष पवित्र हो परमगति प्राप्त होता है। राजेन्द्र! वहाँ से महान शंगवेरपुर की यात्रा करे। महाराज! पूर्वकाल में दशरथनन्दन श्रीरामचन्द्रजी ने वहीं गंगा पार की थी। महाबाहो! उस तीर्थ ने स्थान करके मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। ब्रह्मचर्य पालन पूर्वक एकाग्र हो गंगाजी में स्नान करके मनुष्य पापरहित होता तथा वाजपेय यज्ञ का फल पाता है। तदनन्तर तीर्थयात्री परम बुद्धिमान महादेवजी के मुञजवट नामक तीर्थ को जाय। भरतनन्दन! उस तीर्थ में महादेवजी के पास जाकर उन्हें प्रणाम करके परिक्रमा करने से मनुष्य गणपति पद प्राप्त कर लेता है। उक्त तीर्थ में जाकर गंगा में स्नान करने से मनुष्य सब पापों से छुटकारा पा जाता है।
राजेन्द्र! तत्पश्चात् महर्षियों द्वारा प्रशंसित प्रयागतीर्थ में जाय। जहाँ ब्रह्मा आदि देवता, दिशा, दिक्पाल, लोकपाल, साध्य, लोकसम्मानित पितर, सनत्कुमार आदि महर्षि, अंगिरा आदि निर्मल ब्रह्मर्षि, नाग सुर्पण, सिद्ध, सूर्य, नदी, समुद्र, गन्धर्व, अप्सरा तथा ब्रह्माजी भगवान विष्णु निवास करते हैं। वहाँ तीन अग्निकुण्ड हैं, जिसके बीच से सब तीर्थों से सम्पन्न गंगा वेग पूर्वक बहती है। त्रिभुवनविख्यात सूर्य पुत्री लोकपावनी यमुनादेवी वहाँ गंगाजी के साथ मिली हैं। गंगा और यमुना का मध्यभाग पृथ्वी का जघन माना गया है। ऋषियों ने प्रयाग को जधनस्थानीय उपस्थ बताया है। प्रतिष्ठानपुर (झूसी) सहित प्रयाग, कम्बल और अश्वतर नाग तथा भोगवतीतीर्थ यह ब्रह्माजी की वेदी है। युधिष्ठिर! उस तीर्थ में वेद और यज्ञ मूर्तिमान होकर रहते हैं और प्रजापति की उपासना करते हैं। तपोधन ऋषि, देवता और चक्रधर नृपतिगण वहाँ यज्ञो द्वारा भगवान का यजन करते हैं। भरत-नन्दन! इसीलिये तीनों लोकों में प्रयाग को सब तीर्थों की अपेक्षा श्रेष्ठ एवं पुण्यतम बताते हैं। उस तीर्थ में जाने से अथवा उसका नाम लेने मात्र से भी मनुष्य मृत्यु काल के भय और पाप से मुक्त हो जाता है। वहाँ के विश्व विख्यात संगम में जो स्नान करता है, वह राजसूय और अश्वमेध यज्ञों का पुण्य फल प्राप्त कर लेता है।
भरतनन्दन! यह देवताओं की संस्कार की हुई यज्ञभूमि है। यहाँ दिया हुआ थोड़ा सा भी दान महान होता है। तात! तुम्हें किसी वैदिक वचन से या लौकिक वचन से भी प्रयाग में मरने का विचार नहीं त्यागना चाहिये। कुरुनन्दन! साठ करोड़ दस हजार तीर्थों का निवास केवल इस प्रयाग में ही बताया गया है। चारों विद्याओं के ज्ञान से जो पुण्य होता है तथा सत्य बोलने वाले ब्यक्तियों को जो पुण्य की प्राप्ति होती है, वह सब गंगा-यमुना के संगम में स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है।