आधा ज्ञान फिर भी अभिमान
आप क्या कभी कबूतर का घोंसला देखे हैं? टूटा-फूटा उजड़ा सा और कभी कभी तो नहीं ही होता है। ज्यादातर किसी का बना बनाया घर ही कबूतरों का बसेरा होता है। बात उस जमाने की है जब बना बनाया जरुरत से ज्यादा जगह में नही रहता था उस समय कबूतर झाड़ियों में अण्डे दिया करते थे। लोमड़ी आती उनके अण्डे खा जाती। रखवाली का कोई ठीक प्रबन्ध न बन पड़ा तो कबूतरों ने दूसरी चिड़ियों से बचाव का उपाय पूछा। चिड़ियों ने कहा पेड़ पर घोंसला बनाने के अलावा और कोई चारा नहीं। कबूतर ने घोंसला बनाया पर वह ठीक तरह बन न सका। आखिर उसने तय किया कि दूसरी चिड़ियों की सहायता से घोंसला बनाने का काम पूरा किया जाय। चिड़ियों को बुलाया तो वे खुशी खुशी आई और कबूतर को अच्छा घोंसला बनाना सिखाने लगी। अभी घोंसला बनना शुरू ही हुआ था कि कबूतर ने कहा- ऐसा बनाना तो हमें ही आता हैं ऐसा तो हम खुद बना लेंगे। चिड़ियां वापिस चली गई। कबूतर ने बहुत कोशिश की पर घोंसला ठीक से बना नहीं। वह फिर चिड़ियों के पास गया। खीजती हुई वे फिर आई और तिनके ठीक तरह जमाना सिखाने लगी। आधा भी काम पूरा न हो पाया था कि कबूतर उचका। उसने कहा- ऐसे तो मैं जानता ही हूँ। चिड़ियाँ फिर वापिस चली गई। कबूतर लगा रहा पर वह बना फिर भी न सका। चिड़ियों के पास फिर पहुँचा तो उन्होंने साफ इनकार कर दिया और कहा - जो जानता कुछ नहीं और मानता है कि मैं सब कुछ जानता हूँ, ऐसे मूर्ख को कोई कुछ नहीं सिखा बता सकता। नासमझ कबूतर अपने ओछे अहंकार में किसी से कुछ न सीख सका और आज तक कबूतरों का घोंसला अन्य चिड़ियों की तरह नहीं बनता है, वो टुटा फूटा ही बना पाता है। कहानी की तात्पर्य है अगर हमको कोई काम नहीं आता, और हम किसी और से सीखना चाहते है तो जो वो सीखा रहा है, उसको ध्यान से सीखे, चाहे वो थोड़ा बहुत हमको आता भी क्यू ना हो, पहले उसकी बात ध्यान से सुन समझ ले, परमात्मा ने किसी को भी सौ प्रतिशत परफेक्ट नहीं बनाया, हम सभी को हर किसी से जो भी कौशल है, उसको सीखना चाहिए, यही सफल जीवन की कहानी लिखने में कारगर होता है।