मोक्ष का एक मार्ग - सेक्स
संबंध तो आईना की तरह होता है यह बताने के लिए की... हम कितने प्रेमपूर्ण, सेक्स, प्यार, नफरत, भरोसा, विश्वास, भ्रम, अज्ञान, होश-बेहोशी आदि से भरे हुए हैं, संबंधो से प्रेम नही पनपता, प्रेम से संबंध पनपते हैं...
जहां तक सेक्स, संभोग की बात है, तो यह इतना बड़ा मुद्दा है कि अगर कोई इस पर लिखने की हिम्मत करे तो पढ़ने वाले, लिखने वाले की भाषा या कंटेंट पर विचार करने लगेगा.... इतना अनुभव ?
अपने अनुभव के आधार पर लिखने वाले लेखकों का प्रत्येक शब्द समाज के लिए आइना के समान हो जाता है। भ्रम नहीं हर सत्यता को समाज के सामने करना कलम के पुजारियों का एक दायित्व भी है। आज एक ऐसा कंटेंट जो प्रत्यक्ष नही तो अप्रत्यक्ष रूप से सभी को पढ़ने और जानने की इच्छा होती है और हम मनुष्य जीवन में यह जानकारी आवश्यक भी है। क्योंकि? मनुष्य जीवन इन चार स्थिति से गुजरते हुए व्यतीत होती है धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
इन चार में काम- सम्भोग, सेक्स के बिना मन कुंठित होता है मन कुंठित रहते धर्म कार्य का सम्पादन नही होता। जब धर्म कार्य नहीं होगा तो मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। मोक्ष का एक मार्ग सेक्स, इसलिए मनुष्य जीवन में सही रुप से संभोग सेक्स की जानकारी भी होना आवश्यक है। सेक्स का मुद्दा हमारे समाज में शादी से काफी हद तक गुंथा हुआ है। शादी से इतर सेक्शुअल रिश्ते अलग कॉम्प्लीकेशंस लिए होते हैं। सेक्स शादी से हो या शादी से बाहर, इसकी सहजता दोनों लोगों के बीच की समझ और भरोसा ही सबसे बड़ी चीज़ है और इस पर ध्यान बहुत कम दिया जाता है।
इस बारे में सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि औरतें भी लिखती हैं दर्द भरी भाषा में! कैसे पति या प्रेमी बिस्तर पर आता है और थकी हारी साथी को घसीटकर बिना उसमें कोई भावना जगाए पूज्यनीय योनि से सीधे अपनी वासना बुझा लेता है। लिखा जाना ज़रूरी है मगर जो पुरुष ये लिखते हैं, क्या वे अपनी पत्नी या प्रेमिका का कंधा छूकर उसका इनकार या उसकी इच्छा समझ पाते हैं ? जो स्त्रियां ये लिखती हैं, क्या उन्होंने कभी गंभीरता से अपने साथी को इन बातों से अवगत कराया है ? युगों-युगों से प्रेम और सेक्स पर लिखे जाने के बावजूद ऐसा क्यूँ है कि पृथ्वी पर आधे से अधिक लोग अपने प्रेमी या प्रेमिका से सेक्स के दौरान आत्मिक होकर नहीं जुड़ पातें ? बल्कि अपनी हवस का शिकार बनाने रेप करने का ही कार्य करते हैं।
मनुष्य बेमौसम हर रोज सेक्स की इच्छा लिए संभोग करने लगता है किन्तु उसे यह भी कम ही पता होता है कि अपने साथी को संतुष्ट किया या नहीं। सही सेक्स तो नीरक्षीर की भाँति दो तन-मन को एक कर अद्भुत आनंद देने वाला होता है। स्त्रीयां शर्मिली और संकोची होती हैं वहीं पुरुष भ्रम अज्ञानता बस होस खो बिना स्त्री की कांमाग्री को सेक्स के लिए सही रुप से तैयार किए बगैर अपनी समझ से सेक्स करता है और शिध्र संकलित हो स्त्री को असंतुष्ट कर देता है संकोच बस स्त्री कुछ कह नहीं पाती है मन ही मन ग्लानि महसूस कर अपने पुरुष साथी से घृणा करने साथ सेक्स से कतराने नफरत करने लगती है।
क्या सेक्स दो आत्माओं का मिलन है ? सेक्स जब अपने सुख के लिए किया जाता है, तो ना ही वह आनंदमय हो पाता है और ना ही आध्यात्मिक। सेक्स जब दोनों के सुख के लिए किया जाता है, जिसमें साथी का सुख ही वरीयता पर हो, उस सेक्स का सुख अब तक शायद ही कोई जान पाया हो। वहीं, सेक्स में अगर साथी की सुविधा और साथी के सुख का ध्यान ना रखा गया हो, तो स्त्री विरोध करे या ना करे, वह सेक्स है ही नहीं, मैं पूरी दावे के साथ कहता हूं वह रेप है। और ऐसे सेक्स की आड़ में रेप लगभग 95% रोज होता है। सही सेक्स में पुरुष के साथ-साथ स्त्री को चरम सुख की प्राप्ति होती है और रेप में न ही पुरुष को चरम सुख प्राप्त होता है न ही स्त्री को, पुरुष अपनी हवस बुझा लेता है तो वही स्त्री दुख दर्द झेलती झल्ला जाती है। और अंदर ही अंदर अपने जीवन साथी से घृणा भी करती है।
ऐसी स्थिति में मन ही मन शादीशुदा स्त्रीयां भी वैसे साथी को तलाश करती हैं जो चरम सुख प्रदान कर सके। अपने जीवन साथी की व्यस्तता या भागदौड़ की जिंदगी से चरम सुख प्राप्त न होने पर ज्यादातर स्त्रीयों को भी अपने एक अदद प्रेमी साथी कि तलाश देखने को मिलती है। प्रेमपूर्ण प्रेम भरा सेक्स तन-मन को तृप्त करता है वहीं शरीर को स्वस्थ रखने और बहुत सारी बिमारीयों को दूर करने में भी वास्तविक सेक्स मदद करता है। रेप सिर्फ उतना नहीं है, जितना यह नज़र आता है। यह भी नहीं है कि केवल रेप ही एक समस्या है, जिसका हल होना चाहिए, रेप सिर्फ एक कड़ी है। दुनिया असल में एक लंबी जंज़ीर है। यहां जंज़ीर का नियंत्रण ताकतवर के हाथ में है, रेप और हिंसा के मामलों में पुरुष ही ताकतवर है। असमानता के क्षेत्र में पुरुषों की प्रमुख भागीदारी, पहले तो पुरुषों को मिसोजिनिस्ट होना इस तरह सिखाया गया कि अब यह डीएनए में शामिल हो चुका है।
अब जानकारी, संवेदनशीलता और प्रगतिशीलता के नाम पर और भी विकृत तरीके से चीजे़ें पेश की जा रही हैं। जैसे यह बताया जाता है कि औरतें पुरुषों से ज़्यादा सेक्शुअल होती हैं। लेकिन यह नहीं बताया जाता कि वो सेक्शुअलिटी फंक्शन कैसे करती हैं ? जैसे फेमिनज़्म में पुरुषों से बराबरी के लिए सही-गलत सारी चीज़ों को जस्टिफाई कर दिया जाता है कि मर्द स्मोकिंग और ड्रिंकिंग करते हैं, तब तो नहीं बुरा लगता ? मगर यह नहीं बताया जाता कि फेफड़ा और लिवर एक ही तरीके से काम करता है सबका। मैं देखता हूं पीरियड्स को जब खुले मंच पर लाया जाता है, तो उसे अपवित्रता के खांचे से निकालने की कोशिश तो की जाती है लेकिन उसे मज़ाक का विषय तब भी रहने दिया जाता है। हालांकि ये दोनों बातें आंशिक रूप से ही सही हैं। अपवित्रता वाला सिद्धांत अब भी चलता है, सिवाय उन जगहों के जहां आदमी का स्वार्थ पूरा होता हो।
अपने घर की औरत रसोई से पानी नहीं ले सकती लेकिन रेडलाइट एरिया में जाने पर पीरियड्स वाली औरतों की अलग डिमांड होती है। अजीब है कि ऐसे मर्दों को ना धर्म बहिष्कृत करता है और ना ही समाज। आज भी रेप की रिपोर्ट नहीं की जाती है, क्योंकि इससे पीड़िता की बदनामी हो जाएगी, रेपिस्ट हमेशा खुलेआम घूमेगा। उसका परिवार, माँ-बाप, पत्नी, बच्चे, कोई बहिष्कृत नहीं करेगा। अगर वह कुंवारा निकला तो पंचायत उसी बलात्कारी से पीड़िता की शादी करवाएगी।
छेड़छाड़ के बारे में घर में अब भी नहीं बताया जाता है, क्योंकि? इससे राह की दीवारों की संख्या बढ़ जाएगी। जो रेप केस दर्ज़ होते हैं, जिन पर ट्रायल होता है, उनका प्रतिशत रेप की तुलना में बहुत कम है और जिन मामलों में न्याय मिल जाता है, उन्हें तो उंगलियों पर गिना जा सकता है। इसी तरह ‘प्रेम में स्त्री’ जैसे शीर्षक लेकर भी बहुत कुछ लिखा जाता है। कभी-कभी यह अच्छा लगता है पढ़कर और अच्छा होता अगर ये कविताएं सिर्फ कविताएं नहीं होतीं, प्रेम में स्त्री लिखने वाले पुरुष कविताओं जैसा ही प्रेम भी कर पाते। जिन पुरुषों को सिर्फ अपनी हवस शांत करनी हो उन्हें तो चुपके से सीधे रेड राइट एरिये में जाकर अपनी हवस शांत कर लेनी चाहिए। और अपने मन को शांति दे मोंक्ष का मार्ग सुलभ कर लेना चाहिए। रेड लाइट एरिया मे स्त्रियां पुरुषों के प्रेम की भूखी नही होती न ही उन्हें संतुष्टी की आवश्यकता होती है। जैसा कि घर के अंदर रहने वाली औरतों को प्रेम के साथ साथ तृप्ति की आस होती है। रेड लाइट एरिया की स्त्रियां समाज में होते रेप के मामलों को कम करने का कार्य करते हुए अपने शारीरिक धन्धे को सकुशल संचालित करती हैं।
आप इस पर अवश्य सोचें। जरूरी नहीं कि मेरी सभी बातें ठीक हों। कौन दावा कर सकता है सभी बातों के ठीक होने का। ऐसा मैं सोचता हूं, मैंने कहा। उस पर सोचना। हो सकता है कोई बात ठीक लगे, तो ठीक लगते ही बात सक्रिय हो जाती है। न ठीक लगे, बात समाप्त हो जाती है। अपने अनुभव के आधार पर जो ठीक लगता है, वह लिख देना लेखकों का दायित्व है। समाज के समक्ष लेखनी अपने विवेक अपने अनुभव से प्रदान करना हम लेखकों का कर्तव्य है। सेक्स - गंभीर से गंभीर बिमारियों का इलाज.... जानने के लिए इस लाइन पर क्लिक किजिये ।