आओ समझाएं देशी अर्थशास्त्र
आम इंसान की कमाई घटी - बाजार बेरौनक। बढ़ गई महंगाई इसके लिए जिम्मेदार सरकार की निजीकरण व्यवस्था और पूंजीपतियों की मुखातिब मीडिया
डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है। इसका सीधा-सीधा असर आने वाले समय में महंगाई के रूप में सामने आ रहा है।
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रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने बताया कि उपभोग बढ़ाओ लेकिन सरकार उपभोग कैसे बढ़ाएगी?
इसका जवाब किसी के पास नहीं है? क्या आपको लगता है कि वित्त मंत्री के पास इसकी कोई जवाबदारी है। हमने बार-बार रुपया के कमजोर होने वाले खबर पर लिखे जाने वाले कई तरह के लेख को पढ़ा और जाना समझा। लेकिन यह बात सामने आई कि अगर लोगों के जेब में पैसा नहीं है उनकी कमाई नहीं बढ़ रही है तो अर्थव्यवस्था आम लोगों की कैसे चलेगी। लोगों के जेब में पैसे कम हो रहे हैं उनकी बचत कम हो रही है, ऐसे में धीरे-धीरे बाजार से खरीदारी भी कम हो रही है। मैं 8-10 दुकानदारों और बड़े शहर के थोक विक्रेताओं से इसकी पुष्टि भी की। दरअसल वे भी बताते हैं कि उनके सामान बिक नहीं रहे हैं। वहीं इसका कारण अगर जाना जाए तो साफ नजर आता है की फुटकर सामान की भी बिक्री लगभग धीरे-धीरे खत्म हो रही है। सवाल सीधा सा है कि अगर उपभोग नहीं बढ़ा तो बाजार में आम लोगों के द्वारा खरीदा जाने वाली वस्तु भी कम खरीदी जाएगी।
अगर आपके जेब में पैसा जरूरत की वस्तु खरीदने के लिए है तो भी आप सोचेंगे कि महंगी वस्तुओं को खरीदने में कितना खर्च किया जाए। बाजार हमेशा डिमांड और सप्लाई के बंधन में बंधा होता है।
मान लीजिए कि लोगों के पास पैसे की सप्लाई कम है तो जाहिर सी बात है कि पैसे से खरीदी जाने वाली हर वस्तु की डिमांड भी लोगों में कम होगा। जब पैसे से खरीदी जाने वाली वस्तु का डिमांड काम होगा तो बाजार में वह प्रोडक्ट बिकेगी नहीं। यानी कारोबार होगा नहीं। कारोबार इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि लोगों के जेब में पैसा नहीं है, कारण यह है कि महंगाई बहुत है, टैक्स ज्यादा है।
ग्रामीण सहित शहरी क्षेत्रों में रहने वाला लोअर मिडल क्लास का परिवार कम कमाई के कारण कम खर्च कर रहा है तो इस तरह के सभी लोअर मिडल क्लास उपभोग भी काम कर रहे हैं। जब उपभोग कम हो रहा तो बाजार की वस्तुएं भी बिक नहीं रही है, इसी तरह कई शहरों की हालत है। लेकिन केंद्र सरकार के पास इस तरह का कोई सॉल्यूशन ही नहीं है। आम इंसान के पास उसकी सैलरी में इजाफा नहीं है और बाजार में मांग नहीं है तो वस्तुएं महंगी भी है इसके साथ ही बेरोजगारी भी बढ़ रही है।
जीडीपी ऊपर जाए या नीचे जाए या अमीर और अमीर हो जाए उससे फर्क पड़ने वाला है ही नहीं। अगर आसपास के आम लोगों के पास पैसे आ रहे हैं तो वह खरीदारी करेंगे बाजार चकाचक चलेगी खुशियली आएगी यही देशी अर्थशास्त्र।